किस ग़म की बात करू, किस किस ग़म की तेरे पास दवा है, लाखो छेद बने हैं दिल पर, अब तक हर एक ज़ख्म हरा है । महलों में रहने वाले महलों से, निकले तो देखेगे, चांद गगन का उनकी खातिर, फिर छत पर आज रुका है । जो जो बातें हैं ईस दिल में आज नसे में कह देता हूं, साकी फिर भर पैमाना फिर, पागल दिल बहक रहा है । "चौहान"