काश कि या रब,हर पल हर दिन पहले जैसा हो जावे ।
फिर से माटी में खेलू ,दिल फिर से बच्चा हो जावे ।
शिकवे झड़ते हैं होठों से, आंखों में अपनापन हैं,
हस के उसको कह दूं अपना,तो वो रुसवा हो जावे ।
" चौहान"
फिर से माटी में खेलू ,दिल फिर से बच्चा हो जावे ।
शिकवे झड़ते हैं होठों से, आंखों में अपनापन हैं,
हस के उसको कह दूं अपना,तो वो रुसवा हो जावे ।
" चौहान"
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