Saturday, May 19, 2018

खाब आंख से टपकने लगे ।

ग़ज़ल
आज राह में, वो क्या मिले ,
खाब आंख से टपकने लगे ।
छूह गई नज़र,जाम दरद के ,
आज फिर कदम, फिसलने लगे ।
रोकती रही बंदिसे फ़कत,
सिसकता रहा,चाह का गुनाह ।
गुजरने लगे जब करीब से ,
दांत जीभ को कांटने लगे ।
आरजू करे जबत का धुआँ,
आग के बिनां जल रहा जिगर ।
किस तरह बुझे, इश्क की अगन,
जब कहा जिसे, सोचने लगे ।
राह राह से, जब मिला सनम,
मोड़ ले गया कारवां सफर ।
सबब से मिले राहगुजर जहां
बेवजह वहीं बिछड़ने लगे ।
"वौहान"

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