Friday, March 30, 2018

यादों की आग शायरी

सिसकियों का
सांसो में  भर जाना
यादों की आग पर
दिल को जलाना
लफ्जों में हलीमी
का आ जाना
हँसी में
दर्द सी मुस्कुराहट 
का मिल जाना
अपने आस पास से लेकर के  दूर तक 
रेगिस्तान को महसूस करना
वैराग में
पलकों तले अश्कों को रोक कर
नैनों की चमक बरकरार रखना
ए मेरे महबूब 
क्या इसी को हिजर कहते हैं ?
क्या यही बिरहा है ?
"चौहान"

No comments:

Post a Comment