सिसकियों का
सांसो में भर जाना
यादों की आग पर
दिल को जलाना
लफ्जों में हलीमी
का आ जाना
हँसी में
दर्द सी मुस्कुराहट
का मिल जाना
अपने आस पास से लेकर के दूर तक
रेगिस्तान को महसूस करना
वैराग में
पलकों तले अश्कों को रोक कर
नैनों की चमक बरकरार रखना
ए मेरे महबूब
क्या इसी को हिजर कहते हैं ?
क्या यही बिरहा है ?
"चौहान"
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