मोहब्त्त से लबरेज
पंखड़ी जैसे
नाजुक होठों से निकलते बोल
गहरी काली
रात की खामोशी में
महक सी भर देते है
हुस्न की बात करती
तारों की टिमटिमाहट
से शरारत करना
चाँद को देखकर
अपना होंठ काट कर
उस पर आपका हसना
शांत झील में
पत्थर फेंकने जैसा होता है
ना ना
दिल पर छुरी चलाने जैसा होता है
नहीं यकीं तो
मेरी छाती पर अपना सिर रखकर
दर्द से तड़पती दिल की धड़कन को
सुन कर देखो।
पंखड़ी जैसे
नाजुक होठों से निकलते बोल
गहरी काली
रात की खामोशी में
महक सी भर देते है
हुस्न की बात करती
तारों की टिमटिमाहट
से शरारत करना
चाँद को देखकर
अपना होंठ काट कर
उस पर आपका हसना
शांत झील में
पत्थर फेंकने जैसा होता है
ना ना
दिल पर छुरी चलाने जैसा होता है
नहीं यकीं तो
मेरी छाती पर अपना सिर रखकर
दर्द से तड़पती दिल की धड़कन को
सुन कर देखो।
"चौहान"
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