Saturday, March 31, 2018

साँसों की महक शायरी

ग़ज़ल
ख्वाबों, के रंग बिखरे ऐसे,
स्मेटू ,तो हाथ कुछ ना आवे ।
गवाह हर पल के,महक सासों की,
उड़ा दू ,तो हाथ कुछ ना आवे ॥
वफ़ा से निकलेंं, वफा की बातें ,

जफ़ा से निकलें, जफा की बातें।
दबी है,जो बात मेरे दिल में ,
सुनादू , तो हाथ कुछ ना आवे ॥
समूंदर ही तो, नहीं दिल साहिब

कहीं शबनम तो, कहीं गुलशन है
दबे हैंं,अंगिआर भी कुछ इस में
हवा दू ,तो हाथ कुछ ना आवे ॥
फ़कत ये दो हर्फ ही तो ना हैं ,

खुशी हैं, ग़म हैं, लहू हैंं, दम हैं ।
रखूं तो शिकवा, किसी को होगा,
मिटादू ,तो हाथ कुछ ना आवे ॥
कहीं पे अहसास कोई सुलगे,
कहीं पे बिरहन,घटा भी बरसे ।
ग़ज़ल में लिखकर,ग़ज़ल ही इस को.
बना दू ,तो हाथ कुछ ना आवे ॥
" चौहान "

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