Wednesday, October 31, 2018

दामन तक आ गया है गरेबाँ फटा हुआ

कुछ होश भी है ऐ दस्त-ए-जुनूँ देख क्या हुआ
दामन तक आ गया है गरेबाँ फटा हुआ
अल्लाह रे ये कमसिनी इतना नहीं ख़्याल
मय्यत पे आके पूछते हैं इनको क्या हुआ
नज़र-ए-अदा हुआ के नियाज़-ए-क़ज़ा हुआ
पहलू में एक दिल था ख़ुदा जाने क्या हुआ
अपनी हदूद से ना बढे़ इश्क़ में कोई
क़तरा हुबाब बन के जो उभरा फ़ना हुआ
आओ 'असीर' अब तो यही मशग़ला सही
एक रोये और दूसरा पूछे के क्या हुआ ।
(दस्त-ए-जुनूँ = पागलपन का हाथ), (गरेबाँ = गरिबान/ कंठी)
(कमसिनी = बचपना, )
(नज़र-ए-अदा = प्रियतम की अदाओं की भेंट), (नियाज़-ए-क़ज़ा = मौत की इच्छा/ कामना)(हदूद = मर्यादाओं, सीमाओं), (हुबाब = पानी का बुलबुला), (फ़ना = बर्बादी, तबाही, मृत्यु)
(मशगला = शगल करना, दिल बहलाव)
( ਨੈਟ ਤੋਂ ਕਾਪੀ ਕਰਿਆ ਹੋਇਆ ਜੀ )

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