Monday, April 9, 2018

Mera Mehboob poetry

ग़ज़ल
मुश्किल ये है कि मुश्किल जैसी मुश्किल नहीं है ।
मैं सागर हू कि मेरा, कोई साहिल नही है ।
उनका अंदाज ऐसा, जो मारे है नज़र से
मेरा महबूब है वो,कोई कातिल नहीं है ।
कागज़ को कह रहा है,ग़म अपनी बेबसी का,
शायर है दिल दिवाना,ना ना पागल नहीं है ।
दौलत की गुफ्तगू है,दौलत से है लियाकत,
चल ए दिल तू निकल चल,अब तू काबिल नहीं है ।
क्यूं फिर खेलता है,पागल बाजी वफ़ा की,
जाहिल "चौहान" है तू ,पर वो जाहिल नहीं है ।
"चौहान"

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