ग़ज़ल
ज़ख्म -ए-हिजर,हर दवा दे कहीं बेहतर ।
ए इश्क तू हर बला से , कहीं बेहतर ।
कैसे लिखे, ए कलम दिललगी उनकी,
जो दिख रही है वफ़ा से, कहीं बेहतर ।
क्यूं न कहूं दर्द को मैं , अब दवा अपनी,
देवे लुत्फ़ जो सुधा से , कहीं बेहतर ।
ना तू ना तेरा कोई बन, सके शायर
वो बददुआ थी दुआ से कहीं बेहतर ।
"चौहान" तू खाक सा है, नहीं है खाक,
तेरी अदा हर अदा से, कहीं बेहतर ।
"चौहान"
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